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देख कर दिल-कशी ज़माने की आरज़ू है फ़रेब खाने की ऐ ग़म-ए-ज़िंदगी न हो नाराज़ मुझ को आदत है मुस्कुराने की ज़ुल्मतों से न डर कि रस्ते में रौशनी है शराब-ख़ाने ...